भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसी बेरहम के सताये हुए हैं / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:13, 20 अप्रैल 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


किसी बेरहम के सताये हुए हैं
बड़ी चोट सीने पे खाये हुए हैं

हरेक रंग में उनको देखा है हमने
उन्हींके जलाए-बुझाये हुए हैं

कोई तो किरण एक आशा की फूटे
अँधेरे बहुत सर उठाये हुए हैं

जहाँ चाँद, सूरज है, तारें हैं लाखों
दिया एक हम भी जलाये हुए हैं

गुलाब उनके चरणों में पहुँचे तो कैसे!
सभी ओर काँटें बिछाये हुए हैं