भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ लतीफों को सुनते सुनाते हुए / पवन कुमार

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:02, 25 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन कुमार }} Category:ग़ज़ल <poem> कुछ लती...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ लतीफों को सुनते सुनाते हुए
उम्र गुज’रेगी हंसते हंसाते हुए

अलविदा कह दिया मुस्कुराते हुए
कितने ग“म दे गया कोई जाते हुए

सारी दुनिया बदल सी गयी दोस्तो
आँख से चंद पर्दे हटाते हुए

सोचता हूँ कि शायद घटें दूरियां
दरमियां फासले कुछ बढ़ाते हुए

एक एहसास कुछ मुख़्तलिफ’ सा रहा
सर को पत्थर के साथ आज’माते हुए

जिं’दगी क्या है क्यों है पता ही नहीं
उम्र गुज’री मगर सर खपाते हुए

याद आती रहीं चंद नदियाँ हमें
कुछ पहाड़ों में रस्ते बनाते हुए

चाँद है गुमशुदा तो कोई ग“म नहीं
चन्द तारे तो हैं टिमटिमाते हुए