भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहने को इंसान बहुत हैं / पवन कुमार

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:20, 26 अप्रैल 2013 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहने को इंसान बहुत हैं
पर इनमें बेजान बहुत हैं

मैं इक सादा वरक’ अकेला
बंधने को जुज’दान बहुत है

कच्चे रंग सँभालें ख़ुद को
बारिश के इम्कान बहुत हैं

दरियादिल है शायद मालिक
इस घर में मेहमान बहुत हैं

काश इनमें कुछ फूल भी होते
कमरे में गुलदान बहुत हैं

काश कि कोई ज’ह्न भी चमके
जिस्म यहाँ जीशान बहुत हैं

इश्क’ ही नेमत इश्क’ खुदाई
पर इसमें नुक’सान बहुत हैं

वरक = पृष्ठ, जु’जदान = पुस्तक बांधने का कपड़ा, इम्कान = सम्भावना, जीशान = चमक