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ख़ूबसूरत से कुछ गुनाहों में / पवन कुमार
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ख़ूबसूरत से कुछ गुनाहों में
उम्र गुजरे तेरी पनाहों में
ख़्वाब गिरते ही टूट जाते हैं
कैसी फिसलन है तेरी राहों में
अब जरूरत न हो तख़ातुब की
काश ऐसा असर हो आहों में
शाम चुपचाप आ के बैठ गयी
तेरे जलवे लिये निगाहों में
ऐसी तकदीर ही न थी वरना
हम भी होते किसी की चाहों में