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लम्हों की तलाश / पवन कुमार
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वो लम्हा
मेरी मुट्ठी से
रेत की तरह फिसल गया
ऐसा लगा कि मुझसे
कोई ‘मैं’ कहीं निकल गया।
ढूँढ़ता हूँ उसी टुकड़े को
हरेक शख़्स के वजूद में
...शायद यह तलाश
ताउम्र
जारी रहेगी।