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यात्रा - दो / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित

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क्या खर्च किया तुमने
क्या मैंने
इसकी परवाह नहीं
हम कौन हैं
जो खर्च करते हैं
हम माध्यम हैं
कराता तो वो हेै
जो ‘अदृश्य’ है
यदि इसी चक्कर में रहें
तो
यात्रा का मजा
बेमजा हो जाएगा
और
यात्रा का भाव कहीं
‘खो’ जाएगा
और मैं यात्रा को बेमजा
खंड में नहीं ले जाना
चाहता