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मैं / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित

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लोकार्पण
उद्घाटन
फीता या अनावरण समारोह
गाल-बजाते
हीं-हीं करते, ताली और कैमरे
के आगे
नतमस्तक होते हम लोग
फिर रिपोर्ट बना
अखबार-पत्रिकाओं में भेजने को
व्याकुल
पुनः खबरों में अपने को
देखना चाहते हैं
आखिर हम खबर होना चाहते हैं
कहीं लूट-डकैती
चोरी-चक्कारी, सीना-जोरी
बलात्कार, आगजनी
नाव डूबी बम फटा
बस खाई में गिरी
लोग बह गए
बदमाश लूट ले गए
हर जगह होते हैं हम
हम कहां नहीं है
जब तक रहेगी सृष्टि
हम ही होंगे हर जगह
हर पल हर क्षण
अलग-अलग रूप में
धर्म में जाति में
मानव में मनुष्य में
पहचानो, महसूस करो
हमें ही पाओगे
देखो मैं तुम्हारे अंदर हूँ
तुम्हारे अंदर
तुम्हारे विवेक में
जब भी कोई क्षण
तुम्हें कुछ बुरा करने को रोके
तो
समझ जाओ
वह
मैं हूँ
मैं...