भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुट्ठी भर आटो / शिवराज भारतीय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मुट्ठी भर आखर‘क
मुट्ठी भर रूणक‘क
मुट्ठी भर उजियाळो
कांई नांव दयूं
इण कविता रो
विचारां रै इणी गतागम में
उळझेड़ो म्हैं
अदीठ में ताकै हो‘क
बारणै आगै खड़यो
बाइसेक साल रो जोध जवान
कान फडायां
अर भगवां पैर्यां
हेलो दियो
माई मुट्ठी भर आटो।