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मैंने सहेज कर रखी है / नीरज दइया

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तुम्हारी स्मृति 
अभी तक नहीं भूली 
मुझ तक पहुंचने के रास्ते

मैंने सहेज कर रखी है
तुम्हारी स्मृति
अपने सपनों के संग !

सीमाएं सदैव बदली
और कुछ बदले हम भी
पर इस बदलाव में
नहीं बदली, मेरे लिए-
तुम्हारी छवि
यदि बदल जाती 
तो भूल जाती स्मृति-
मुझ तक पहुंचने के रास्ते ।