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भरोसा / नीरज दइया

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धरती के जिस छोर से
देख रहा हूं तुम्हें
और जो थोड़ा-सा अंश
देख पाता हूं तुम्हारा
उतने में ही खुश हूं मैं
नहीं चाहिए मुझे
तुम्हारा पूरा रूप।

इस अंतहीन ब्रह्माण्ड में
मुझे भरोसा है
बस उतने ही रूप पर
जितना समाया है-
मेरी आंख में।