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सारा आकाश / प्रतिभा सक्सेना

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बस पंख सलामत रहें
सारा आकाश तुम्हारा
कोई घेरा .
काफ़ी नहीं तुम्हारे लिये
न सीमित करती कोई कारा .
पंख जहाँ ले जायँ,
वहीं पर लिखा दे नाम तुम्हारा .
नाम जो मेरे स्व का विस्तार
दिया तुम्हें मेरी अस्मिता ने
जहाँ तक तुम्हारी पहुँच,
व्यप्ति है मेरी!
समर्थ रहें पंख,
स्वतंत्र, सचेत, निर्बाध!
और सारा आकाश तुम्हारा .