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रूप-गौरव / विद्यापति
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आँचरे बदन झपावह गोरि।
राज सुनैछिअ चाँदक चोरि।।
घरें घरें पहरि गेलछ जोहि
एषने दूषन लागत तोहि।।
बाहर सुतह हेरह जनु काहु
चान भरमे मुख गरसत राहु।।
निरल निहारि फाँस गुन जोलि
बाँधि हलत तोहँ खंजन बोलि।।
भनइ विद्यापति होहु निशंक
चाँदहुँ काँ किछु लागु कलंक।।