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ये शबे-अख़्तरो-क़मर चुप है / ‘अना’ क़ासमी
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ये शबे-अख़्तरो-क़मर<ref>चाँद तारों भरी रात</ref> चुप है
एक हंगामा है मगर चुप है
चल दिये क़ाफ़िले कयामत के
और दिल है कि बेख़बर चुप है
उनके गेसू <ref>बाल</ref>और इस क़दर बरहम<ref>बिखरे हुए</ref>
इक तमाशा और इस क़दर चुप है
पहले कितनी पुकारें आती थीं
चल पड़ा हूं तो रहगुज़र<ref>रास्ता</ref> चुप है
बस ज़बां हां कहे ये ठीक नहीं
क्या हुआ क्यों तिरी नज़र चुप है
बर्क़<ref>बिजली</ref>ख़ामोश, ज़मज़मे ख़ामोश
शायरी का हरिक हुनर चुप है
राज़ कुछ तो है इस ख़मोशी का
बात कुछ तो है तू अगर चुप है
शब्दार्थ
<references/>