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कोनो बिसरल गामक नाम दू पाँती / राजकमल चौधरी

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1
साँझक सिन्नुराह अन्हारमे डूबल गंगानदीक घाट पर ठाढ़
होइत छी,
नहि मोन पड़ैत अछि ओ छोट छीन धार ...
नाह पर झिझरी खेलाएब
मलाह गोंढ़िक गीत गाएब बहकल स्वरमे
सिनेह पोसल कुकूर जकाँ
घाट-बाट घुरिआएब नहि मोन पड़ैत अछि।
भगवती थानक ओ गोल गुम्बदबला मन्दिर
आ, मन्दिरक स्वामिनी....
ओ शान्त स्निग्ध मुखाकृति
ओ प्रार्थना-मन्त्र
ओ सभटा बिसरि गेल अछि, जकरा कारणें,
हमरा हृदयमे कविता छल,
आ, हमर आँखिमे हिरण्यगर्भ इजोत !

2
साँझक सिन्नुराह अनहारमे डूबल गंगा नदीक घाट पर ठाढ़ होइत छी,
तँ लगैत अछि, शरीरसँ बहरा क’ हमर ओ पूर्व-जीवन
हमर ओ पूर्व-जीवन
अठबज्जी स्टीमर पर चढ़ि क’ जा रहल अछि।
ओहि पार-
हमरा शरीरसँ विदा ल’ !
ओहि पार, आ गंगाक एहि पारमे आब पचीस बर्ख
आ दू जन्मान्तरक अन्तर अछि .....

3
सुखा गेल होएत ओ चित्र लिखित सन छोट धार
ओ शान्त स्निगध मुखाकृति आत्म-ग्लानिसँ भ’ गे होएत ज्वालामुखी....
ओहि गामक सभ लोक बरौनी-कारखाना मे,
अथवा कलकŸाा जमशेदपुर....
बचि गेल होएत केवल स्त्री-समाज
मनिआर्डरक प्रतीक्षा
आ, बीतल वयसक स्मृतिमे ब्यस्त !