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बुलबुलक गीत / धीरेन्द्र
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एक दिन बुलबुलक एक गोट जोड़ा, आहारक खोजमे
अरबक मरूभूमिकें छोड़ि पुरूब भागक जमीन दिस भागल।
आ’ जत’ ओ आएल, ओत’ ओकरा। आधार भेटलैक,
आहार भेटलैक आ कालक्रमे जन्म लेलकैक मारते रास बच्चा-बुच्ची
मुदा कहियो-कहियो एकाकी क्षणमे अरबक ओ भूमि मोन पड़ै ओकरा।
आ ओ कान’ लागए, जकरा लोक ओकर गीत बुझए !
परिस्थितिक झामरमे छिना गेल माटिक लेल, कनबाक ई परम्परा
ओकर पुश्त-दरपुश्त धरि चलैत रहल;
आ’ बुलबुलक गीत सुनल अछि अपने ? कतेक करूण होइछ !