भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तरंग / हंसराज
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:04, 3 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हंसराज |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatMaithiliRachna}} <...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बीच जल-तरंगमे झिलहरि खेलाइत
तीनटा कुमारि नव यौवना
करूआरि ल’ नाओ खेबबाक निमित्त
झगड़ा करैत, एके बैर गंगामे कूदि गेलीह !
खाली डगमग करैत नाओ
भसिआएल जा रहल अछि
आ, ठेहुन भरि नाओक पानिमें
डूबल अछि करूआरि।
ललाओन खरखर पाथरक सोपान पर बैसल हम
देखि रहल छी घोर-मट्ठा हिलकोरसँ होइत एकाकार
नीरव, नील नभमे उठल अछि बड़ी जोर बिहाड़ि।