भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आजुक सत्य / रमानन्द रेणु
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:03, 4 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमानन्द रेणु |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatMa...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आइ बाट पर चलैत
सभ लोक अनचिन्हार लगैत अछि
गाम-घर टोल-पड़ोस
आ देस-कोसक
सगरो लोकक मुहेंठ पर
विवशताक धुपछाँही पसरल छैक
मेघ आकाशमे
चकभाउर करैत अछि
अहाँ किऐ एना सरंगपताल देखा रहल अछि ?
हमर हाथ-पैर सुन्न अछि
अहाँ केहन धूर्त छी
से हम आइए बुझलहुँ अछि
सगरो संसारमे
दीप टिमटिमाइत अछि
तैयो अहाँ अनभुआर बनल छी ?
गाछक धोधरिमे
सैंतल चिड़ैक बच्चाकें
साँप गिरि गेल अछि
मोनक प्रत्येक दोग सान्हिमे
पसाही लागल छैक
बताह कखन-की करत
तकर कोन ठेकान ?
कनिएँ थम्हू
हम पहिरन बदलि लैत छी