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कविकीर्ति / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

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रचती है कविता-सुधा सुधासिक्त अवलेह।
लहता है रससिध्द कवि अजर अमर यश-देह।1।

चीरजीवी हैं सुकवि जन सब रस-सिध्द समान।
उक्ति सजीवन जड़ी को कर सजीवता दान।2।

अमल धावल आनन्द मय सुधा सिता सुमिलाप।
है कमनीय मयंक सम कविकुल कीर्ति कलाप।3।

गौरव-केतन से लसित अनुपम-रत्न उपेत।
अमर-निकेतन तुल्य हैं कविकुल कीर्ति-निकेत।4।

मानस-अभिनन्दन, अमर, नन्दन बन वर कुंज।
है पावन प्रतिपति मय कवि पुंगव यश पुंज।5।