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आजुक तिथिमे / विभूति आनन्द

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आजुक तिथिमे
बहुत मुश्किल भ’ गेल छै
अपना कें बचौनाइ
ताहू सँ बेसी मुश्किल भ’ गेल छै
अपन संवेदनाकें सुरक्षित रखनाइ
धनछूहाक प्रजाति आइ काल्हि
अपन करतब देखौनाइ शुरूह क’ देने छै
प्रदूषित होब’ लागल छै चिनगी-चिनगारी

खण्ड-खण्ड सोचमे पिघलि रहल छै पृथ्वी
आकाशकें झाँप’ लागल छै लौहयंत्र
विस्तृत-विलुप्त जीव-जन्तु सभ पर
शोध भ’ रहल छै
शोध भ’ रहल छै
बहुत-बहुत ग्रहण करबाक कोशिशमे लागल
मनुष्यक अनन्त इच्छा पर सेहो, तें
अंतरीक्षीय चित्र सभक
ठाम-ठाम प्रदर्शनी लगाओल जा रहल छै

एहना तिथिमे
बहुत मुश्किल भ’ गेल छै
मीतक नेहकें बुझनाइ
सिरमामे बैसल उजास
ऊबि क’ बजा अनलक अछि रौदकें
ओ हमर दिनचर्यामे
सेन्ह मार’ चाहि रहल अछि
आ हम अपना अन्दर
अनुभव कर’ लागल छी कोनो
तेज बर्छीक प्रहारकें

सिरमामे बैसल
उजासक संग घुलल-मिलल रौद आब
ठीक, बर्छी सन भ’ गेल अछि
आ हम रोगग्रस्त पिता जकां
कछमछ कर’ लागल छी

कि एही कालमे
चोरक पैर संग
अबैत अछि हमरा छोटका बेटा गप्पू
आ हाथमे रखने दियासलाइक काठीसँ
हमर कानकें दिक् करब शुरूह क’ दैत अछि...
अंततः हमर आँखिक पट फुजि जाइत अछि, आ
ओ भभा क’ हँसैत पड़ा जाइत अछि

हम अपन आँखिक कडुआहहिकें
तरहत्थीक कोरसँ दुलारैत छी
तथा खिड़की पर बैसल रौद आ चिड़ैसँ
गप कर’ लेल लुसफसाए लगैत छी
दुआरि पर बैसलि मां
चूल्हि महक छाउरसँ
चिनगी बीछि रहलि छथि

चारक मथनी दने अबैत कुमारि बसात
हमर अंग-अंगकें दुलरा रहल अछि...