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जनवादी / केदार कानन

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कवितामे रचि रहल छी
नव-नव परिभाषा
कविताकें कसैत छी
शब्दक नव-नव जालसँ
मुदा कसाइत नहि अछि कविता
कोनो पिछड़ाह वस्तु सन
छूटि-छूटि जाइत अछि हाथसँ
जखन कि हम
घोषित करैत छी-
हे लिअ’, इए भेल जनवादी

जन मुदा कवितासँ कोसो दूर
बौखैत रहैत अछि
फिफरिया कटैत रहैत अछि
एक साँझक रोटी आ नोन लेल
माथक घाम एंड़ीसँ चुअबैत
हकमैत रहैत अछि

ओ नहि जनैत अछि
जे लिखल गेल छैक
ओकरा लेल कविता
अथवा ढेरक ढेर
तैयार भ’ रहल छैक अहर्निश
ओकरे लेल कविता

ओ एहि तमाम स्थितिसँ
नितान्त अपरिचित
रहैत अछि निरपेक्ष
ओकरा लेल बेसी अनिवार्य छैक
ठेला घीचब वा माल ऊघब
रिक्श वा टैम्पू चलाएब
निश्चये जीवनक आवश्यकता
ओकर किछु आर छैक, कविता नहि
आ कवि लेल ?
सोचैत छी हम
मुदा लिखि नहि पबैत छी
कोनो जनवादी कविता
कविताक चौबगली अपस्यांत होइत रहैत छी
मुदा तैयार नहि भ’ पबैत अछि
शब्द आ भाषा
जीवन आ जन केर कविता।