लोहक मनुक्ख / रमेश
गहमक हरियरी आ ठोर परहक मुसुकी हेरा जैत, कारी खकस्याह जहरदानाक संतापसँ। पुवारि बाधक चरिकठबामे ठाढ़ धू पर बीट करत चहड़ा-चिड़ै। राम नरैनक टी.भी सँ निकलल लोहक मनुक्ख जजात के करत लसौना-लसौना। मोड़ामे राखल पुरना वासमती, दुमूँही कोठिक अरबा चानन-चूड़, घैलमे मूनल कतरनी चूड़ा आ परसौतीक
डँड़बन्हा सुठौरा झोड़ि-झाड़ि क’ चलि देत लोहक मनुक्ख-डॉलर झनझनबैत। सुरड़ि-सुरड़ि क’ भकोसि लेत बाकसक पात आ श्याम-तुलसी। कड़कड़ा क’ चिबा जैत नीमक छाल आ जाफड़ हरीड़। नागफेंची गुरीच के जड़ी सुंघा क’ राखि लेत भिड़िया क’, कम्पयूटरक फ्लॉपीमे लोहक मनुक्ख। टांगि लेत गिदड़माड़ा जकाँ कनहा पर मँछगिद्धी आ हड़हाड़ा, बेग आ लुक्खी, प्रशोनधन लेल। घोड़न आ चाली के बनाओत अँचार आ प्रोटीन-पाउडर। पेटेन्ट क’ क’ बेचत मेक्सिको आ महिषीमे। मटर-केराव आ मकइक
मैग्गी फँक्काक-फँक्का फँकैत, अफ्रीकाक मनुक्ख-सोखा गाछ जकाँ रहड़ियाक पुष्ट दाना आ मोलही-सौंफक पीरा पराग कण भकोसैत, पारासूट तानि क’ उड़ि जैत
अड़ना-पाड़ा। प्रात भेने रामनरैनक टी.भी. गुराड़त जखने उदारतापूर्वक अपन आँखि कि लेसर किरण-पुंज सँ गुजरात-आसामक तेलकूप धधाए लागत धू-धू। भूमण्डल दिस दोसर आँखि नचौत त’ सम्मोहनक रासायनिक मरछाउर छिटा जैत विश्वभरिक खंजन-नयनमे आम आ इल्वीक मोजर तूब’ लागत, झरकबाहि लागल एकमस्सू गर्भ जकाँ टुकड़ी-टुकड़ी, बुन्द-बुन्द....
गाम-नगर बेचैन अछि। संसद हमर निचैन अछि। संसद थिक भंगतराह भोलनाथ, जकर गनेक-परिकरमा क’ क’ लोहक मनुक्ख बनि जैत सभसं’ बुधियार-पूत। बतहा हाथी जकाँ झूमि क’ ओ घोषणा करत, ब्रह्माण्डक निस्सीमताक अंतक। प्रकृतिक स्नेह-वात्सलय आ सृजन-धर्मिताक अंतक। रत्नगर्भाक गर्भपातक करत शंखनाद। इतिहास आ सभ्यताक अंतक करत घोषणा लोहक मनुक्ख, फूको शैलीमे पांचजन्य फूकि क’। भ’ रहल छै प्रतीक्षा नोर आप्लावित पावस सत्रक। शून्यपीड़ित शून्यकालक। प्रश्न-पीड़ित प्रश्नकालक। ध्यानी सिंहक ध्यानाकर्षण प्रस्तावक। मुदा लोक जनैए आश्वासन आ निवेदनक अर्थ। प्रश्न आ ध्यानाकर्षणक नियति। वर्तमान आ भविष्य। लोक चिन्हैए सात समुद्र-पारक रिमोटक बुट्टम पर राखल तर्जनी-अनामिकाक चम-चम चमकैत नगीना।