दुखता दिल / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
क्यों नहीं बता दो प्यारे।
सुख की घड़ियाँ आती हैं।
क्यों तुम्हें तरसती आँखें।
अब देख नहीं पाती हैं।1।
हो गये महीने कितने।
पर मेरी याद न आई।
क्यों पिघला नहीं कलेजा।
क्यों आँख नहीं भर पाई।2।
मैं समझ नहीं सकती हूँ।
क्यों गया मुझे कलपाया।
जो नरम मोम जैसा था।
वह पत्थर क्यों बन पाया।3।
दिल उन्हें देख छिलता है।
है उनकी फबन न भाती।
मैं जिन फूलों को देखे।
थी फूली नहीं समाती।4।
बावली बनाना था ही।
तो क्यों हँस हँस कर बोले।
सब दिन जो फूला रहता।
उस दिल में पड़े फफोले।5।
जब मुझे याद आती हैं।
वे प्यार भरी सब बातें।
तब बीत नहीं दिन पाता।
काटे खाती हैं रोतें।6।
मैं भूल गयी हूँ कैसे।
यह मुझे बता दो प्यारे।
बस गये आँख में किस की।
मेरी आँखों के तारे।7।
मैं घिरी ऍंधोरे से हूँ।
है भरा रगों में दुखड़ा।
आकर मुझ को दिखला दो।
वह खिले चाँद सा मुखड़ा।8।