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बिखरे फूल / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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बिना छेदे बेधो बाँधो।
किसी ने कब गजरे पहने।
नहीं गोरेपन के भूखे।
क्यों बनें वे तन के गहने।1।
दूसरों का मन रखने को।
किसलिए बनें अनमने वे।
जिसे बनना हो वह बन ले।
गले का हार क्यों बनें वे।2।
जहाँ हैं पड़े वहीं रह कर।
रंग अपना दिखलावेंगे।
नहीं इसकी परवा उनको।
जो न सिर पर चढ़ पावेंगे।3।
फेर लो अपनी आँखों को।
बे तरह वे गड़ जावेंगे।
करोगे उन्हें उठा कर क्या।
हाथ मैले हो जावेंगे।4।
पास आते हैं क्यों भौंरे।
मना कर दो इन भूलों को।
पड़ा रहने दो मत छूओ।
हमारे बिखरे फूलों को।5।