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चेतावनी / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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है समझ आज घर बसा न रही।
राह पर है हमें लगा न रही।1।
जागते क्यों नहीं जगाने से।
जाति क्या है हमें जगा न रही।2।
तब भला क्यों हवा न हो जाते।
जब हमारी बँधी हवा न रही।3।
बे तरह हो रहे दुखी क्यों हैं।
क्या दुखों की कोई दवा न रही।4।
रंगतें यों बिगाड़ कर मेरी।
रंग लाती कभी बला न रही।5।
जाय वह हार क्यों गले का बन।
कब भला काहिली ववा न रही।6।
बेबसी बे तरह फँसा कर के।
यों कभी फाँसती गला न रही।7।
क्यों लहू पर है पड़ गया पाला।
चाट क्या चोट है चला न रही।8।
बेहयापन पसन्द क्यों आया।
किसलिए आँख में हया न रही।9।
कब तलक यों फटे रहेंगे हम।
क्या गला फूट है दबा न रही।10।