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गंगाजल हो तुम / राजेश श्रीवास्तव
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मेरा स्वप्निल कल हो तुम
मेरे पुण्यों का फल हो तुम।
आम्र बौराई देह का
स्निग्ध साँवले स्नेह का
धवल प्रतिरूप लिए
कस्तूरी-सी मधुर गंध का
देह बसी सोंधी सुगंध का
वरदान अनूप लिए
परम पावन गंगाजल हो तुम।
मेरे पुण्यों का फल हो तुम।
अँखियों की कुंवारी आस
या अनबुझ-सी कोई प्यास
कहीं आस-पास टहले
आमंत्रण के बहके राग
तन में जब सुलगाएं आग
कोई कब तक सह ले
मीठा मदहोश संबल हो तुम।
मेरे पुण्यों का फल हो तुम।
कभी आंवला, कभी बताशा
पल में तोला, पल में माशा,
अभी नहीं पर अभी हो
चुपके से तन दहका जाए
छूकर जो मन महका जाए
रजनीगंधा सुरभि हो
कभी न ठहरे वह पल हो तुम।
मेरे पुण्यों का फल हो तुम।