दिल मेरा देख देख जलता है
शम्मा का किस पे दिल पिघलता है
हम-नशीं ज़िक्र-ए-यार कर के कुछ आज
इस हिकायत से जी बहलता है
दिल मिज़ा तक पहुँच चुका जूँ अश्क
अब सँभाले से कब सँभलता है
साकिया दौर क्या करे है तमाम
आप ही अब ये दौर चलता है
अपने आशिक की सोख़्त पर प्यारे
कभू कुछ दिल तेरा भी जलता है
देख कैसा पतंग की ख़ातिर
शोला-ए-शम्मा हाथ मलता है
आज ‘काएम’ के शेर हम ने सुने
हाँ इक अंदाज़ तो निकलता है