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प्रतिदिन / महेश वर्मा
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यातना उसके चेहरे से पुँछी नहीं है, सोती हुई
स्त्री के सपनों में आगामी यातनाओं के चलचित्र हैं
पीठ की ओर पुरुष पराजय
ओढकर लेटा है अपने सीने तक ।
कहीं बाहर से आता है वह प्रकाश
जो एक दायरा बनाता है इसी स्त्री पीठ पर ।
पुरुष हर रात यह जादू देखता है अपने स्पर्श में
दो उजले पंख,
कन्धे और पीठ के बीच की सुन्दर जगह से बाहर आते इस प्रकट संसार में ।
ठीक बगल में जो सो रही है स्त्री यह उसी के बारे में है ।
पुरुष बाहर प्रकाश देखता है जो यह दायरा बनाता है । अब तो अभ्यास से
भी यह जानता है कि ऐसा करते ही गायब हो जाएँगे
हौले से छूता है सफ़ेद पंख ।
करवट बदल कर
स्त्री अन्धकार की ओर अपनी पीठ कर लेती है ।