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सड़के / बसंत त्रिपाठी

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कुछ सड़कें सौगात में मिलती हैं
कुछ सड़कें
जिन्‍हें हम देखते हैं
अपनी ही उम्र में बनते हुए

कुछ डामर वाली, सीमेण्ट की कुछ
कुछ ऐसी जिन्‍हें छोड़ दिया गया अधूरा

जंगल से गुज़रती है एक लम्बी चिकनी सड़क
एक आपकी गली तक आते-आते
हाँफने लगती है
एक रोज़ सबेरे बुहारी जाती है
एक रोती रहती है ताउम्र
कि उसके बनने में लोगों के उजड़ने की
दारुण कथा दफ़न है
कवि !
कौन-सी है तुम्‍हारी सड़क
क्‍या वह कोई पगडण्डी है
या राजमार्ग
क्‍या उस पर सूखी पत्तियाँ अब भी झरती हैं
क्‍या बारिश उसे धोती है अब भी
क्‍या तुम्‍हारी सड़क
किसी दूसरी सड़क से भी मिलती हैं
क्‍या लोग उस पर चलते हैं बेख़ौफ़

यदि नहीं
तो लिख दो उस पर
'यह आम रास्‍ता नहीं है’
तुम उस पर चलो चाहे लेटों
करे क्‍यों तुम्‍हारी परवाह कोई ?