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वैश्विक मंदी / बसंत त्रिपाठी
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फुटकर सब्ज़ी विक्रेता की तरह
तराजू हाथ में लिए
अपनी उखड़ी नींद की रातों में खड़ा हूँ मैं
और तौल रहा हूँ अपना जीवन
एक पलड़े पर रखा है
बुनियादी नागरिक सुविधाओं का मासिक बजट
दूसरे पलड़े पर मासिक आय की उदास करेंसियाँ
गुरुत्वाकर्षण शक्ति के विरुद्ध
मासिक आय का पलड़ा उठता ऊपर बार-बार
ब्रह्माण्ड की सारी शक्तियाँ जैसे
खींच रही हो उसे
और न्याय करने वाला काल्पनिक ईश्वर
लाचार
मासिक आय के पलड़े को नीचे लाने में
जुटा है पूरा परिवार
हर माह लेकिन शिकस्त
केवल और केवल शिकस्त....