भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
व्यवस्था भी बहुत ज़्यादा नहीं है / ख़ालिद कर्रार
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:46, 16 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ख़ालिद कर्रार |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> व...' के साथ नया पन्ना बनाया)
व्यवस्था भी बहुत ज़्यादा नहीं है
जतन जोखम बहुत हैं
आगे जो जंगल है वो
उस से भी ज़्यादा गुंजलक है
तपस्या के ठिकाने
ज्ञान के मंतर
ध्यान की हर एक सीढ़ी पर
वही मूरख
अजब सा जाल ताने बैठा है युगों से
न जाने क्यूँ
मेरे रावण से उस को
पराजय का ख़तरा है
तो यूँ करता हूँ
अब के ख़ुद को ख़ुद से त्याग देता हूँ