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ज़र्द पत्तों की रूत क्या क्या न समझाए मुझे / नसीम सय्यद

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ज़र्द पत्तों की रूत क्या क्या न समझाए मुझे
हर थका हारा शजर आईना दिखलाए मुझे

देर तक महका किया वीराना-ए-कुंज-ए-ख़याल
उस से मिल के मोतिये के फूल याद आए मुझे

अपनी गहराई का मुझ को ख़ुद भी अंदाज़ा नहीं
ख़ुद में जब डूबूँ समंदर सा नज़र आए मुझे

गर्दिश-ए-तक़दीर के कुछ है मुसलसल दाएरे
हर जनम मेरा ग़लत तहरीर कर जाए मुझे

हसरत-ए-तामीर में मिट्टी मेरी बर्बाद हो
जुरअत-ए-इज़हार दीवारों में चुनवाए मुझे

मेरी हस्ती को वो जैसे चाहे वैसे हल करे
ज़र्ब दे मुझ को कभी तक़सीम कर जाए मुझ