भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जगह / आशुतोष दुबे
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:55, 24 जून 2013 का अवतरण
एक संकुल संसार में
जो चला गया
वह अपने पीछे छोड़कर नही गया
कोई ख़ाली जगह
उसी की जगह ख़ाली रही
जो अब तक नही आया
बनी हुई जगहें
ईर्ष्या से देखती हैं
किस तरह
अनुपस्थिति बुनती है एक जगह
जो प्रतीक्षा करती है