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जलाशय / आशुतोष दुबे
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तालाब में डूबते हुए
उसने सोचा
उसके साथ उसका दुःख भी डूब जाएगा
वह ग़लत था
उसके डूबते ही
तिर आया उसका दुःख सतह पर
कहा जा सकता है
कि वह जलाशय दरअसल एक दुखाशय था
जहाँ हल्के और भारी
बड़े, छोटे और मझोले दुःख तैरते रहते थे
जो देख पाते थे
वे अपने से बड़े दुखों को देख लेते थे
और लौट जाते थे
जो नही देख पाते थे
वे अपने भी दुःख उसी को सौंप जाते थे
कहने की ज़रूरत नही
कि वह बहुत सदाशय था