Last modified on 19 अक्टूबर 2007, at 02:51

रौरव नरक-कुंड में / महेन्द्र भटनागर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:51, 19 अक्टूबर 2007 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


रौरव नरक-कुंड में
मर-मर जीना कैसा लगता है

कोई हमसे पूछे!

सोचे-समझे, मूक विवश बन
विष के पैमाने पीना कैसा लगता है

कोई हमसे पूछे!

हृदयाघातों को सह कर हँस-हँस
अपने हाथों, अपने घावों को
सीना कैसा लगता है

कोई हमसे पूछे!