तुम परेशां न हो / कैफ़ी आज़मी
तुम परेशां न हो बाब-ए-करम वा न करो
आैर कुछ देर पुकारूंगा चला जाऊंगा
इसी कूचे में जहां चांद उगा करते थे
शब-ए-तारीक गुज़ारूंगा चला जाऊंगा
रास्ता भूल गया या यहां मंिज़ल है मेरी
कोई लाया है या ख़ुद आया हूं मालूम नहीं
कहते हैं कि नज़रें भी हसीं होती हैं
मैं भी कुछ लाया हूं क्या लाया मालूम नहीं
यूं तो जो कुछ था मेरे पास मैं सब कुछ बेच आया
कहीं इनाम मिला आैर कहीं क़ीमत भी नहीं
कुछ तुम्हारे लिए आंखों में छुपा रक्खा है
देख लो आैर न देखो तो शिकायत भी नहीं
फिर भी इक रात में सौ तरह के मोड़ आते हैं
काश तुम को कभी तन्हाई का एहसास न हो
काश ऐसा न हो ग़ैर-ए-राह-ए-दुनिया तुम को
आैर इस तरह कि जिस तरह कोई पास न हो
आज की रात जो मेरी तरह तन्हा है
मैं किस तरह गुज़ारूंगा चला जाऊंगा
तुम परेशां न हो बाब-ए-करम वा न करो
आैर कुछ देर पुकारूंगा चला जाऊ