भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फ़ौज की आख़िरी सफ़ हो जाऊँ / मंजूर 'हाशमी'
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:39, 14 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंजूर 'हाशमी' |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
फ़ौज की आख़िरी सफ़ हो जाऊँ
और फिर उस की तरफ़ हो जाऊँ
तीर कोई हो कमाँ कोई हो
चाहते हैं के हदफ़ हो जाऊँ
इक ज़माना है हवाओं की तरफ
मैं चराग़ों की तरफ़ हो जाऊँ
अश्क इस आँख में आए न कभी
और टपके तो सदफ़ हो जाऊँ
अहद-ए-नौ का न सही गुज़राँ का
बाइस-ए-इज़-ओ-शरफ़ हो जाऊँ