भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रयाण-गीत / सोहनलाल द्विवेदी

Kavita Kosh से
Ganand (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 19:07, 22 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी }} न हाथ एक शस्त्र हो न साथ एक अस्त्र ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न हाथ एक शस्त्र हो न साथ एक अस्त्र हो
न अन्न नीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डटो वहीं, बढे चलो बढे चलो ।


रहे समक्ष हिम शिखर, तुम्हारा पर्ण उठे निखर
भले ही जाय तम बिखर,
रुको नहीं, झुको नहीं, बढे चलो बढे चलो ।


घटा घिरी अटूट हो अधर में कालकुट हो
वही अमृत का घूंट हो
जिये चलो मरे चलो, बढे चलो बढे चलो ।


गगन उगलता आग हो, छिड़ा मरण का राग हो,
लहू का अपने फ़ाग हो
अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढे चलो बढे चलो ।


चलो नई मिसाल हो, जलो नई मशाल हो,
पढो नया कमाल हो
रुको नहीं, झुको नहीं, बढे चलो बढे चलो ।


अशेष रक्त तोल दो, स्वतंत्रता का मोल दो,
कडी युगों की खोल दो,
डरो नहीं, मरो वहीं, बढे चलो बढे चलो ।।