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कई नींदों के बाद / मिथिलेश श्रीवास्तव

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कई नींदों के बाद आने वाली कोई एक नींद
एक अच्छा सपना लाती है
किसी भरे कमरे के भीतर किसी हरे पेड़ के नीचे
किसी धड़धड़ाती हुई ट्रेन की निचली बर्थ पर सोए हुए
किसी बहस के बीच ऊँघते
कामना करनी चाहिए
टूटने से बची रहे नींद
आधी रात डरने से बचा रहे आदमी
बची रहे बराबर एक अच्छे सपने के भीतर
एक और अच्छे सपने की सम्भावना ।

अच्छे सपने में मैं देखता हूं
लोग फिर से निर्भीक हो रहे हैं
अच्छी कविता की एक क़िताब
पढ़ना और पास रखना चाहते हैं
संसार के सारे ताक़तवर मुर्गा बन जाते हैं
मेज़ समझकर उनकी पीठ पर
न्यायाधीश मारता है हथौड़ा
कई आँखों की लौट आती है रोशनी
कई बहरे कान लगते हैं सुनने
कई धमनियों में बहने लगता है
लाल और गर्म ख़ून ।

मैं सपने को बचाना चाहता हूँ
ताक़तवर बनने की अपनी ही इच्छा से
जो उछाल सकती है लोहे की गेंद
कभी भी किसी की नींद में ।