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वो ख़ुद को मेरे अंदर ढूँढता है / अमीन अशरफ़
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वो ख़ुद को मेरे अंदर ढूँढता है
वो सूरत है ये सूरत-आश्ना है
मगर ये अपने अपने दाएरे हैं
कोई नग़मा कोई नग़मा-सरा है
वो बादल है तो क्यूँ है जू-ए-कम-आब
समंदर है तो क्यूँ पर तौलता है
नदी के दरमियाँ सीधी सड़क है
नदी के पार कच्चा रास्ता है
वो ना-मौजूद हर शय में है मौजूद
ये आलम भी अजब हैरत-फ़ज़ा है
न जाने क्या सर-ए-नज्ज़ारा होगा
उसे देखा नहीं दिल मुब्तिला है