भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वा गर्म आँसुओं की रवानी तमाम रात / 'शफ़ीक़' जौनपुरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:29, 20 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='शफ़ीक़' जौनपुरी }} {{KKCatGhazal}} <poem> वा गर्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वा गर्म आँसुओं की रवानी तमाम रात
देखा मआल-ए-सोज़-ए-निहानी तमाम रात

मेरी ही तरह आप कभी मेरी याद में
हों मुब्तला-ए-सोज़-निहानी तमाम रात

मैं आप के हुज़ूर न हूँगा तो दिल मिरा
होगा बराए याद-दहानी तमाम रात

उन की बहार-ए-हुस्न से आलम ही और था
थी चाँदनी भी कितनी सुहानी तमाम रात

रोता नहीं ‘शफ़ीक़’ ही उन के फ़िराक़ में
करती हैं वो भी अश्‍क-फ़िशानी तमाम रात