भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ब्रह्मपुत्र किनारे छठ पूजा / दिनकर कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:46, 20 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रवासी बिहारियों के लिए ब्रह्मपुत्र ही है गंगा
जन्मभूमि से पलायन कर
विस्थापन की पीड़ा झेलते हुए
पूरब की दिशा में आने वाले लोग
ब्रह्मपुत्र किनारे जल में खड़े होकर
अस्ताचलगामी सूरज को दे रहे हैं अर्ध्य

एक दिन के लिए ही सही
घाट के माहौल में वे महसूस करते हैं
अपने पीछे छूटे हुए गाँव-देहात को
शारदा सिन्हा का कैसेट बजाते हुए
किस कदर जज्बाती हो जाते हैं प्रवासी बिहारी
भले ही नदी का नाम बदल गया हो
सूरज तो एक ही है
जो जन्म से साथ-साथ चलता रहा है ।