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रिश्तों की ज़बानें भूल गए / शिवकुटी लाल वर्मा
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रिश्तों के ज़माने भूल गए
रिश्तों की ज़बानें भूल गए,
मज़हब की उलझी डालों में
अश्कों की ज़बाने भूल गए ।
तहज़ीब की सिलवट याद रही
वो ख़ुलूस की बाहें भूल गए,
क़ुदरत की हँसी वो रुसवाई
सब गूँगे रिश्ते भूल गए ।