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इधर होते होते उधर होते होते / 'हफ़ीज़' जौनपुरी

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इधर होते होते उधर होते होते
हुई दिल की दिल को ख़बर होते होते

बढ़ी चाह दोनों तरफ़ बढ़ते बढ़ते
मोहब्बत हुई इस कदर होते होते

तिरा रास्ता शाम से तकते तकते
मिरी आस टूटी सहर होते होते

किए जा अभी मश्क़-ए-फरियाद-ए-बुलबुल
कि होता है पैदा असर होते होते

न सँभला मोहब्बत का बीमार आख़िर
गई जान दर्द-ए-जिगर होते होते

सर-ए-शाम ही जब है ये दिल की हालत
तो क्या क्या न होगा सहर होते होते

ज़माने में उन के सुख़न का है शोहरा
‘हफीज़’ अब हुए नाम-वर होते होते