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जब तेरा हुक्म मिला / अहमद नदीम क़ासमी

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जब तेरा हुक्म मिला, तर्क मुहब्बत कर दी,
दिल मगर स पे वो धडका, कि क़यामत कर दी|

तुझसे किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता,
लफ़्ज़ सूझा तो मआनी ने बग़ावत कर दी|

मैं तो समझा था कि लौट आते हैं जाने वाले,
तूने जाकर तो जुदाइ मेरी कि़स्मत कर दी|

मुझको दुश्मन के रादों पे भी प्यार आता है,
तेरी ल्फ़त ने मुहब्बत मेरी आदत कर दी|

पूछ बैठा हूं, मैं तुझसे तेरे कूचे का पता,
तेरी हालत ने कैसी तेरी सूरत कर दी|