भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़ंजीर की चीख / शाज़ तमकनत

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:25, 29 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शाज़ तमकनत }} {{KKCatNazm}} <poem> समुंदर तुझे ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समुंदर तुझे छोड़ कर जा रहा हूँ
तू ये मत समझना
कि मैं तेरी मौजों की ज़ंजीर की चीख़ से बे-ख़बर हूँ

यही मैं ने सोचा है अपनी ज़मीं को
उफ़ुक़ से परे यूँ बिछा दूँ
हद-ए-ईन-ओ-आँ तक उठा दूँ
वो तू हो कि मैं
अपनी वुसअत में ला-इंतिहा हैं
मगर हम किनारों के मारे हुए हैं