भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ैरआफ़ियत / प्रांजल धर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:40, 15 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रांजल धर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ख़ै...' के साथ नया पन्ना बनाया)
ख़ैरआफ़ियत पूछता हूँ
फूलों से,
पत्थरदिल तितलियों ने जोंक की तरह चूस डाला उन्हें
नदी पार करने के शौकीन मुसाफ़िरों से,
खेवैयों ने डुबोया है जिन्हें ।
चौराहों से,
जहाँ आकर हर गुज़रने वाले ने निर्णय लिया
कि जाना किधर है आख़िर
लेकिन चौराहा न जा सका कहीं
एक इंच भी।
मोबाइल और लैपटॉप से लैस
वीतराग सन्तों से,
जिन्होंने आज तक केवल चोचले ही बघारे हैं ।
हृदयज्ञ सरकार और व्यवस्था से,
जो सिर्फ़ और सिर्फ़ वादों से चलती है ।
ब्राह्मी, खरोष्ठी और आरमेइक लिपियों से पिरोये हुए
मौर्यकालीन ऐतिहासिक अभिलेखों से
जो प्राकृत में लिखे जाते थे
जनता की ख़ैरआफ़ियत को बनाये-बचाए रखने के लिए ।