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ये कैसी आज़ादी है / इरशाद खान सिकंदर
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ये कैसी आज़ादी है
सांस गले में अटकी है
पत्ते जलकर राख हुए
सहमी-सहमी आँधी है
ये कैसा सूरज निकला
जिसने आग लगा दी है
चूहों ने ये सोचा था
दुनिया भीगी बिल्ली है
उसके घर के रस्ते में
हमसे दुनिया छूटी है
अपनी करके मानेगी
चाहत ज़िद्दी लड़की है
मिन्नत छोड़ो चीख़ पड़ो
दिल्ली ऊँचा सुनती है
मिट्टी में मिल जायेगी
मिट्टी आख़िर मिट्टी है