भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाशिया / अचल वाजपेयी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:52, 26 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अचल वाजपेयी |संग्रह=शत्रु-शिविर तथा अन्य कविताएँ }} लि...)
लिखते हुए पृष्ठ पर
हाशिया छूट गया है
इन दिनों ढिठाई पर उतारू है
मैंने पहली बार देखा
हशिया कोरा है, सपाट है
किन्तु बेहद झगड़ालू है
वह सार्थक रचनाएँ
कूड़े के भाव बेच देता है
कुशल गोताखोर सा
समुद्र में गहरे पैठता है
रस्सियाँ हिलाता है
मैं उसे खींचना चाहता हूँ
वह अतल से मोती ला रहा है
सबसे चमकदार मोती
मैं उसे तुम्हीं को सौंपना चाहता हूँ