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पर्वत / अचल वाजपेयी

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वे कभी

पर्वत देखते हैं

कभी अपने बीमार कंधे


मैं उन दोनों को

देर तक देखता रहता हूँ


एक खेल

जो पर्वत को

हम पर थूकने का

अवसर देता है