भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अहेरी / अचल वाजपेयी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:18, 26 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अचल वाजपेयी |संग्रह=शत्रु-शिविर तथा अन्य कविताएँ }} मै...)
मैंने भोर की धूप को
कुछ पल देखा
फिर उसके गुलाब झर गए
आसावरी थम गई
मेरे अन्तर्मन
न जाने क्यों तुम में
एक अहेरी प्रभाव रहता है